हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , दुख़्तर ए रसूल (स.अ.) हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत की मुनासिबत से इमामबाड़ा सब्तैन आबाद हज़रतगंज लखनऊ भारत में हस्बे रिवायत, दफ़्तरे मुक़ामे मोअज़्ज़म रहबरी दिल्ली की तरफ़ से दो रोज़ा मजालिसे अज़ा का इनिक़ाद अमल में आया, जिसकी पहली मजलिस से हुज्जतुल इस्लाम मौलाना मिर्ज़ा अस्करी हुसैन ने ख़िताब किया।
मौलाना मिर्ज़ा असकरी ने अपने ख़िताब में कहा कि इस्लाम हमारी दुनिया और आख़िरत की बेहतरी के लिए आया था, मगर हमने इस्लाम की आफ़ाक़ियत को बावर्जूद इसके कि उसके फ़लसफ़े को महदूद कर दिया। उन्होंने कहा कि अगर हमारी ज़िंदगी इस्लामी तालीमात के मुताबिक़ नहीं गुज़रती तो फिर हमारी ज़िंदगियों में इंकेलाब कैसे मुमकिन है।
आज हमारी समाजी, सियासी और ख़ानगी मुश्किलात की अस्ल वजह इस्लामी तालीमात से दूरी है। हमने दीन को रिवायत बना लिया है और सिर्फ़ हुसूले सवाब का ज़रिया समझा हुआ है। सवाब के दायरे को भी महदूद कर दिया और आज हमारा नौजवान सवाब के फ़लसफ़े के बारे में भी तज़ब्ज़ुब का शिकार है। इस लिए ज़रूरी है नौजवानों तक सहीह दीन पहुँचाया जाए।
मौलाना ने कहा कि हमें यह भी समझना होगा कि दीन हर किसी से न लें। दीन उलमाए हक़ से लिया जाए ताकि हमारी दुनिया भी बेहतर हो सके और आख़िरत भी।
मजलिस के आख़िर में मौलाना ने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) की शहादत के वाक़िए को बयान किया।
उन्होंने कहा कि हज़रत फ़ातिमा (स.अ.) मुदाफ़ ए विलायत थीं। बीबी (स.अ.) ने हर लम्हे विलायत का तहफ़्फ़ुज़ किया, क्योंकि विलायत के बग़ैर दीन महफ़ूज़ नहीं रह सकता था।
मजलिसे अज़ा के आख़िर में तमाम शोहदा, मरहूम उलमा व फ़ुकहा और नवाबीन अवध के लिए फ़ातिहा ख़्वानी भी हुई।
यह मजालिसे अज़ा दफ़्तर आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामनेई दिल्ली की तरफ़ से हर साल मुनअक़द होती हैं।
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